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बनजारा जयशंकर प्रसाद धीरे-धीरे रात खिसक चली, प्रभात के फूलों के तारे चू पडऩा चाहते थे। विन्ध्य की शैलमाला में गिरि-पथ पर एक झुण्ड बैलों का बोझ लादे आता था। साथ ...